करवा चौथ का प्रारंभ भगवान शिव और माता पार्वती की कहानी से

करवा चौथ का प्रारंभ भगवान शिव और माता पार्वती की कहानी से

Share with
Views : 555
पौराणिक कथाओं के अनुसार, करवा चौथ का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है, जिसकी शुरुआत त्रेता युग में हुई थी। यह पर्व सदियों से संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा बना हुआ है और इसकी गहरी भावना को समझने के लिए प्रेरित करता है।

कहते हैं कि पहली बार माता पार्वती ने इस पवित्र व्रत को भगवान शिव के लिए रखा था। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से मां पार्वती को अपार सौभाग्य का आशीर्वाद मिला था और उनके पति की लंबी उम्र की कामना पूरी हुई थी। इस कथा के प्रेरणाप्रद आलोक में, स्त्रीजन करवा चौथ का व्रत रखती हैं, जिसमें वह अपने पति की खुशी और लंबी आयु की कामना करती हैं।
प्रेम का प्रतीक: करवा चौथ एक पत्नी के प्रेम और वफादारी का परिचय देता है। इस दिन पत्नी अपने पति की लंबी आयु और उसकी सुरक्षा की कामना करती है और इसके लिए व्रत रखती है।

हिन्दू परंपरा: करवा चौथ का पर्व विवाहित जीवन में खुशियों और समृद्धि की कामना को प्रकट करता है। यह विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है और लोग इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

संयम और परिश्रम का परिचय: करवा चौथ के व्रत में स्त्री ने रखे गए संयम और परिश्रम का परिचय देता है। यह दिखाता है कि पत्नी अपने पति के लिए कितनी समर्पित है और कितनी मेहनत करने को तैयार है।

सामाजिक समृद्धि: इस पर्व के माध्यम से समाज में पति-पत्नी के बंधनों को मजबूती से जोड़ने की प्रेरणा मिलती है और सामाजिक समृद्धि की कामना की जाती है।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व: करवा चौथ का त्योहार हिन्दू धर्म और संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्सा है जो पति-पत्नी के बंधनों को मजबूत करता है और परिवार की एकता को बढ़ावा देता है।
इस साल करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर 2023 को हैं 
करवा चौथ व्रत समय- सुबह 6 बजकर 36 मिनट से रात 8 बजकर 26 मिनट तक
करवा चौथ पूजा मुहूर्त- शाम 5 बजकर 44 मिनट से रात 7 बजकर 2 मिनट तक 
चांद निकलने का समय- रात 8 बजकर 26 मिनट पर
error: कॉपी नहीं होगा भाई खबर लिखना सिख ले